काश
काश
काश कि ना समझी मे ही,
बीत जाता सारा जीवन
भीगता रहता बारिश की हर बूंदों में,
फिर से ये अंतर्मन।
छतरी चाहे खुली हो या बंद,
नजरें तो चाहती केवल वही
पहली रिमझिम
फुहारों वाला आनंद।
लेकिन अब घनघोर घटाएं,
जब भी बारिश की बूंदों में समाए,
यूं लगता है जैसे आनंद और टीस,
दोनों संग संग है आए ,
और खुले नयनों के रास्ते
हौले से बह जाए।
