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शाह फैसल सुखनवर

Abstract Romance Tragedy

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शाह फैसल सुखनवर

Abstract Romance Tragedy

कांटों पर चलता हूं

कांटों पर चलता हूं

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कांटों पर चलता हूं

फूलों से डरता हूं।


वो हर पल जीती है

मैं पल पल मरता हूं।


सब कुछ लूट गया वो

हाथों को मलता हूं।


तुम क्यों चुप रहते हो

जब मैं कुछ कहता हूं।


मैं हूं इक आंसू बस

आंखों से बहता हूं।


लोगों को बदसूरत

तुम को क्या लगता हूं।


तन्हा क्यों हो फैसल

तन्हा ही रहता हूं।


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