काँपता सूरज
काँपता सूरज
ग्रीष्म ऋतु में आग बरसाता सूरज ,
देखो थर थर काँप रहा है ।
अपनी गर्मी पर इतराता सूरज ,
बादल की दुशाला ओढ़े,
तन मन अपना छुपा रहा है ।
प्रचंड ताप का स्वामी भास्कर
आज हार गया हिमपात में,
है मगर स्वाभिमानी सदा से
कल चमकेगा नीलगगन में ,
लिये सुनहरी किरणों की आभा
और दमकता यौवन लेकर ,
देने जन जीवन को प्राण सुधा
वापस लौटेगा आसमान में ।
आज ठंड से काँपता सूरज
पूरी अपनी आभा के संग
कल चमकेगा आसमान में