कागज कलम
कागज कलम
एक दिन कागज और कलम की लड़ाई छिड़ गई.....
मैं अपने जज़्बात तुझ पर ना लिखती
तो तू कोरा कागज रह जाता...
अगर लिखने के लिए मैं ना होता
तो तेरी शायरी एक खयाल बंद रह जाता
मैं ना लिखूं तुझ पर तो
लोग तुझे मोड़ कर फेंक दे ...
मैं ना रहूं तो लोग तुझे
इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से बदल कर रख दे....
दोनों की लड़ाई से इतना तो साफ था
कि बिन कागज
के ना कलम का अब वजूद था....
ना बिन कलम
कागज को कोई पूछने मौजूद था....
क से कलम,
क से किताब,
एक दूसरे में खो जाने
की वजह से ही बने हैं जनाब.....
