जवानी का सत्कार कर
जवानी का सत्कार कर
ग़र हो जवान तो
जवानी का सत्कार कर
हाथ में उठा धनुष
और वाण को संधान कर
राह की चुनौतियों के विरुद्ध
युद्ध का आगाज कर
कर वाण को संधान तू
ना कुछ सोच ना ही विचार कर
समय से उत्पन्न कठिनाइयों पर
सीधे- सीधे प्रहार कर
ना झुक कहीं ना रुक कहीं
नदियों सा बहाव कर
गर हो जवान तो
जवानी का सत्कार कर
अरे देख नदियों को
जवानी, वो दिखलाती है
चीर कर पहाड़ों का सीना
गहरे गार्ज बनाती है
कूद पठारों के सर से
निर्माण जलप्रपात कर जाती है
ना रुकती है किसी के रोके
ना ही विसर्प बनाती है
गर है जवान तू भी तो
जवानी का करतब दिखा
सोच में पड़ जाए सभी
कुछ ऐसा ही मंज़र दिखा
जो राह लगे कठिन लोगों को
उसमें अकेला ही तू मार्ग बना
कर जा काम कुछ ऐसा तू
जवानी में
हो पार नाम लेकर तुम्हारा ही
लोग समुद्र रूपी परेशानी में
जवानी में कुछ ऐसा ही चमत्कार हो
तालियों से सत्कार हो
गलियों में जयकार हो।
