जुनून का आसमान
जुनून का आसमान
बेशुमार साजिशें रची गई हैं यहाँ हमें गिराने की
हम बढ़ते रहे धूल झोंककर आंखों में ज़माने की
मुश्किलों का हर पड़ाव मुस्कुराकर पार किया है
उनकी भला क्या औकात हमसे नजरें मिलाने की
नाकाम हुए जिनके मनसूबे पल-पल जलते रहे हैं
मुस्कुरा के अग्निपथ पर अविरल हम चलते रहे हैं
उनकी हर कोशिश हुई है नाकाम हमें झुकाने की
हम उड़ रहे थे जब आसमां में वह हाथ मलते रहे हैं
मंजिल पाने की दिवानगी सर चढ़ कर बोल रही थी
ख्वाहिशें भी कुछ कर गुजरने का रंग घोल रही थी
इतना आसान नहीं था नाराज़ जिद्द को फिर मनाना
मक्कारों की आंखों में आज नाकामी डोल रही थी
जितना गिराओगे उतनी रफ़्तार से आगे बढ़ते जाएंगे
हिमालय की दुर्गम चोटियों को हंस कर चढ़ते जाएंगे
देखना लौटकर हम फिर आएंगे तुम करना इंतज़ार
तुम चादर तान सोना हम नया इतिहास गढ़ते जायेंगे
इतना आसान नहीं होता अपनों को यहाँ समझाना
बहुत मुश्किल होती है दहकती चिंगारी को बुझाना
हमें मुस्कुराते क्या देख लिया पगली ने नजरें फेर ली
आज जाना कितना कठिन है अजनबी को रिझाना ।
