जस् करनी तस् फल
जस् करनी तस् फल
लोगों की मानसिकता पर होता मन अधीर सखे
नारी वर्ग की दीन दशा से मन उठती पीर सखे
ग़र होता बस में मेरे *जस् करनी तस् फल* देती-
बीच चौराहे पर देती मैं उनको पल में चीर सखे..
मौत के बदले मौत जो माँग रहें हैं
उनसे कहो वही पीर भोग के देखें
जैसे नोंच जलाया उसको जिंदा
वैसे ही जला कर उनको देखें..
कैसी होती है पीड़ा तन-मन में
गहरे घावों में लगते हैं कैसे तीर सखे
बीच चौराहे पर देती मैं उनको पल में चीर सखे...
बहन-बहू-बेटियां है नहीं सुरक्षित
इनका भी रस्ता अब करो आरक्षित
कब तक ये नारी ही भयभीत रहे
गुनहगार को दें दो सज़ा विलक्षित
कब तक स्टेटस शमा-दान से ही रोष दिखायेंगे
कब तक अपनी बेटियों को ही समझायेंगे
आख़िर कब होंगे ये सारे जन गंभीर सखे
बीच चौराहे पर देती मैं उनको पल में चीर सखे..
ग़र होता बस में मेरे...