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आकिब जावेद

Abstract Drama

5.0  

आकिब जावेद

Abstract Drama

जरूरी तो नहीं

जरूरी तो नहीं

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सारे नेता ही हो मक्कार जरूरी तो नहीं

सच हो सब इस समय अख़बार जरूरी तो नहीं।


बिक गया झूठ सरे-राह यूँ बाजार में अब

सच का भी कोई हो बाजार जरूरी तो नहीं।


सब चुनावी घुड़की खूब बजाएँगे अब

अब सब प्रत्याशी हो दमदार जरूरी तो नहीं।


ज़िन्दगी के कई रंग देखने को अब मिले हैं

दिल के सब हो ख़रीदार जरूरी तो नहीं।


हम रहे चाहे मंदिर में या हो मस्ज़िद में तुम

सब रखे लोग दिल में रार जरूरी तो नहीं।


मीडिया भी गई बाज़ार में जबसे अब बिक

यों मिले प्यार लगातार जरूरी तो नहीं।


सर-फिरे लोग ही यहाँ करते है यो खून ख़राबा

सब मुस्लिम ही हो गुनहगार जरूरी तो नहीं।


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