जरुरत क्या थी?
जरुरत क्या थी?
तुझे बेवजह इश्क़ करने की जरुरत क्या थी,
मुश्किल सफर में निकलने की जरुरत क्या थी।
पता था कदम कदम पर बिछे हैं लाखों नश्तर,
जान के घर से बाहर निकलने की जरुरत क्या थी।
हम तो मर जाते तुम्हारे दो नफरत के बोल से,
यूं खंजर पर खंजर चलाने की जरुरत क्या थी।
मांग कर तो देखते जो तुम्हें दिल से पसंद था,
यूं झूठ पर झूठ बोलने की जरुरत क्या थी।
बस जाने ही वाला था इस बेमुरव्वत दुनिया से,
यूं साड़ी पहनकर आने की जरुरत क्या थी।