जो जैसा करता वो वैसा भरता है
जो जैसा करता वो वैसा भरता है
जो जैसा करता है वो वैसा ही भरता है
बोते है शूल तो शूल ही काटना पड़ता है,
फिर भी लोग यहां पे कहां माना करते है
पानी को भी आज पिघलना पड़ता है,
भीतर दिल काला,बाहर तन रूपवाला है,
ऐसे लोग लगा रहे सच्चाई पर ताला है,
जो जैसा करता है वो वैसा ही भरता है
अंधेरे से कभी रोशनी हो नही सकती है,
अंधेरे को उजाले के आगे झुकना पड़ता है,
असत्य को सत्य के आगे रोना पड़ता है
बुराई शुरू में लाभ देती है,
पर अंत मे वो श्राप देती है,
बुराईवालो को अंत मे पछताना पड़ता है,
जो जैसा सोचता है वो वैसा ही बनता है
लगा बबूल यहां कोई आम नही बनता है
जैसी करनी वैसी भरनी ये हक़ीक़त है,
अपने कर्म से ही आदमी रोता-हंसता है
जो जैसा करता है वो वैसा ही भरता है!