जो बिखर कर निखरते हैं
जो बिखर कर निखरते हैं
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जो बिखर कर निखरते हैं, वही आफताब सा चमकते हैं,
सच्चे कर्म योद्धा होते हैं वो, कभी संघर्षों से नहीं डरते हैं,
रखते खुद पे विश्वास, हौसला, हिम्मत लेकर चलते साथ,
लकीरों पे करते नहीं भरोसा अपनी नसीब खुद बनाते हैं,
असफलता इन्हें डिगाती नहीं, तूफ़ानों से कभी डरते नहीं,
हिम्मत से काट कर चट्टानों को, अपने रास्ते खुद बनाते हैं,
कुछ कर गुजरने का जुनून लेकर दिल में, बढ़ते सदा आगे,
मझधार में फंसी कश्तियांँ भी बिन पतवार निकाल लाते हैं,
ज़ख्मों की इन्हें परवाह नहीं बस रहती है मंजिल पर नज़र,
ज़िंदगी के हर इम्तिहान के लिए वो खुद को तैयार रखते हैं,
घबरा कर खुद को कैद करते नहीं वो तिमिर के क़फ़स में,
छोड़ते नहीं उम्मीद कभी तमस में भी उजास ढूँढ ही लेते हैं,
ज़िंदगी की जद्दोजहद में सह जाते जो हर तूफ़ान, वही तो,
गर्दिश से तोड़ लाते हैं तारे, मुकद्दर के सिकंदर कहलाते हैं।