ज्ञान
ज्ञान
राह दिखाता है नित ज्ञान
जगत सुहाता है नित ज्ञान।
भरा हुआ हो मन अभिमान
नहीं सुहाता है तब ज्ञान।
ज्ञानी की है क्या पहचान
यह पहले तुम अब लो जान।
फल लगते तब झुकती डाल
है ज्ञानी का भी यह हाल।
निर्मल वाणी मीठे बोल
शब्द निकलते हिय में तोल।
बात वेद पुराण की मान
उर अंतर में है सब ज्ञान।
पोथी पढ़कर मिले न ज्ञान
अपने अंतर को पहचान।
