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Dhanraj Baviskar

Inspirational

3.4  

Dhanraj Baviskar

Inspirational

जन्नत

जन्नत

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304


कितनी नजदीक थी तुम,

तब तुम्हारी कदर नहीं थी

आज हम इतनी दूर हो के,

आपकी यादें आ रही थी

तुम्हारी दुनिया में ही तो जन्नत है  !


तेरी मोहब्बत मैंने ना जानी

इश्क का कतरा तुमने है जानी

कितना तुझे मैंने रूलाया है

इतना होकर भी गले से लगाया है

कितने हसरतें मन में जगाएं थी


ले के दिल मेरा फिर भी अकेली थी

तुम्हारी दुनिया में ही तो जन्नत है  !

जब घर से मैं निकला परदेश को

ऑखो में आंसू तेरे निकले परदेश को           

ये जूल्फों के तले मेरी यादें


ये यादो में छूपी मेरी इरादे

हर पल हर दिन तेरी बातों में डूूबी थी          

ऐसा ना ओ दिन मेेरा तेरा जो आऐ ना थी

तुम्हारी दुनिया में ही तो जन्नत है  !


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