जनाब, मैं कवि हूँ
जनाब, मैं कवि हूँ
हुजूर कवि हूँ, ज़ाहिर है
कल्पनाओं की उड़ान भरता हूँ
शब्द उलझ न जाएँ बादलों से
यही सोचकर अक्सर डरता हूँ
हर बेजुबान की आवाज़ को लिखता रहूंगा
फ़िक्र नहीं है बाद उसके अंजाम क्या होगा
कलम की धार जिधर बहेगी
उधर ही उड़ता चला जाऊंगा
बलखाती नदिया की बूंद बनकर
लहरों से जुड़ता चला जाऊंगा
लाख बंदिशें हों सरहदों पर, मैं चलता रहूंगा
कभी सोचा नहीं बग़ावत का अंजाम क्या होगा
शब्दों को किरदार बनाकर
अधूरे समाज की पटकथा लिखूंगा
जिंदगी की किताब के कोरे पन्नों पर
खामोश इंसान की व्यथा लिखूंगा
लड़खड़ाती क़लम से नए भाव गढ़ता रहूंगा
परेशान नहीं हूँ बाद उसके अंजाम क्या होगा
कल रहूँ न रहूँ, मगर याद रखना
फिर कोई उन्मादी कवि उभरेगा
हर ख़ामोशी की दर्द की दास्ताँ
लिखने को तुम्हारे दिल में उतरेगा
कवि हूँ, काल से भी अनवरत भिड़ता रहूंगा
कैसे कह दूँ जाने के बाद अंजाम क्या होगा ।