ज़मीर
ज़मीर
ज़मीर हमारा आईना है
बेजुबान है पर कमजोर नहीं
याद-दाश्त में गहरा है
ये नुक्स कभी ना भूला है
सारी ग़लत हरकतों का
इसके पास पूरा ब्योरा है
सीरत का असली अक्स है ये
सारी खताओं का बक्सा है
हर गलत कदम पर इसने टोका था
हमने ही अपने को नहीं रोका था
इससे रूबरू हो जाओ अगर
फितरत संवारने की कसम खा लेना
शायद दिल को कुछ सकूँ मिल जाए
जितने बह-के कदम उठाए थे
सजा से अब तक बच पाए थे
गुमान इसपर हरगिज़ मत करिए-गा
जो भी सज़ा का हक़दार बना
ज़मीर के इंसाफ से नहीं बचा
यह खेरख्वाह है इंसानियत का
जहीन सलाहियत तस्लीम करें
दिल से इसका एहतराम करें।
