जलन,,,,,,,,
जलन,,,,,,,,
मेरे इस बीमार दिल को सनम ज़रा दवा दीजिए।
उठी है ज़िगर में बहुत जलन ज़रा हवा दीजिए।।
बनकर आवारा मन का भंवर फिरता मारा मारा।
अपनी पलकों में बिठा कर ज़रा जगा दीजिए।।
बेपनाह मोहब्बत हुई तुमसे क्या है कसूर इसका।
जो भी समझो है नादाँ चाहे ज़रा सिला दीजिए।।
बहुत सहे है हालातों से दर्द और ग़म के थपेड़े।
अगर लगती है ग़लती तो इसकी ज़रा सज़ा दीजिए।।
इश्क़ की ऐसी लगी लत बेइंतहा अब न छूट रही।
एक बार सही अपने दीदार का ज़रा नशा दीजिए।।
कब तक रहे हम तड़प कर बिन तुम्हारे जानम।
आज तो बता कर तुम अपना ज़रा पता दीजिए।।
बहुत दूर जाने से दूरियां कभी भी घटती नहीं।
नीलम तो सिर्फ़ चाहे उसका ज़रा ख़ुदा दीजिए।।