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Anju Gupta

Tragedy

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Anju Gupta

Tragedy

जिस्मों की मंडी

जिस्मों की मंडी

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शिक्षित समाज,

ये सभ्य समाज,,,

सब्जी-भाजी की तरह,

लगती है जहाँ,

आज भी…

जिस्मों की मंडी ॥


नज़रें करें,

तोल-मोल ।

कभी छू कर,

तो कभी कुटिल निगाहों से ।

करें अर्धनग्न…

लगाएँ मोल भाव ॥


सफेदपोशी की चादर ओढ़े,

आदमखोर…

बेचें जमीर ।

और वे मजबूर,

लाचार …

तो बस तन ही बेचें ॥


कुछ मजबूरी में,

तो कुछ हो लाचार ।

रोज़ ओढ़ कफ़न,

हो तैयार ,

सब्जी भाजी की तरह …

बिकने के लिए ॥



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