ज़िन्दगी
ज़िन्दगी


आज स्वप्न में ज़िन्दगी से मुलाकात हो गई
कुछ मैं बता दिया, कुछ वो सुना गई।
मैं सोचता ही रहा, वो क्या कर गई
मुझे मेरे अतीत से रूबरू करा गई।
बता दिया उसने अपने आने का प्रयोजन
क्या थे संकल्प और कैसा था आयोजन।
आने से उसके, परिवार में खुशी बेशुमार थी
पर इन दुआओं के बीच ज़िन्दगी शर्मसार थी।
वो कुछ समझ पाती, एक रिश्ता जुड़ चुका था
वो मेरी और मैं उसका, हमेशा के लिए हो चुका था।
मैं बड़ा होता गया और वो घटती गई
मेरे हर रंग में वो, बेबस सिमटती गई।
मेरे मायूस होने पर वो मुझे समझाती रही
अपने हर मोड़ पर वो मुझे संभालती रही।
सहसा स्वप्न टूटा और मैं कुछ अचंभित सा था
अब मैं अतीत से परे नहीं, कुछ संकुचित सा था।
उसके साथ किए अपने व्यवहार से मैं शर्मसार हूँ
पर वो अब भी मेरे साथ है, इसका शुक्रगुजार हूँ।