जिन्दगी
जिन्दगी
कोई बताये जिंदगी को खास कैसे हम करे
और अपने आप पे विश्वास कैसे हम करे
बात जब दो वक्त की रोटी की आ जाये यहाँ
कोई बताये की यूँ ही उपवास कैसे हम करे--
है ढका तन भी नहीं इस बेबसी की मार से
शर्म से खुद छिपाये है बड़े लाचार से
दुश्वारियों की भाग्य जो लाचारियों से है लिखी
हैं सजी बस वेदनाएं परिहास कैसे हम करे--
शून्य होती कल्पनाएं जो संजोये थे कभी
आज भी अश्के वही जो दिल से रोये थे कभी
दुःख के अनंत ब्रह्मांड में फिर प्रयास कैसे हम करे--
ऐसे नहीं कायर हैं हम पुरुषार्थ निज में है नहीं
धैर्य साहस और कर्म का शब्दार्थ निज में है नहीं
भाग्य पर भी हम भरोसा है कभी करते नहीं
हैं विवशता ये समय का शिवम् आस कैसे हम करे !!