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मिली साहा

Abstract

4.5  

मिली साहा

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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जिंदगी क्या है ज़्यादा सोचोगे तो उलझ जाएगी,

जवाब अगर मांगोगे तो बस वो सवाल ही करेगी,

खुद में ही उलझा देती जो ऐसी पहेली है जिंदगी,

कभी हंसाती कभी रुलाती एक सहेली है जिंदगी,


सुख-दुख उतार-चढ़ाव ये सभी अंग हैं जिंदगी के,

ना जाने कितने रूप और कितने रंग है जिंदगी के,

कभी आजमाती जिंदगी तो कभी हमें सिखाती है,

कभी मीठी गोली तो कभी नीम सी कड़वी होती है,


कांटों की बिसात है जिंदगी कभी फूलों की सेज है,

समझ नहीं पाता कोई इसे यह जिंदगी बड़ी तेज है,

जिंदगी को समझने से ज़्यादा उसे जीना जरूरी है,

और जीने के लिए परिस्थितियों से लड़ना जरूरी है,


जिंदगी को समझने का सबक नहीं किसी किताब में,

जिंदगी को जी कर समझो मत पड़ो इसके हिसाब में,

जिंदगी जिंदादिली का नाम, उलझना इसकी फितरत,

खुशी से जियो जिंदगी से उलझने की क्या है जरूरत,


जो होना है वो तो होगा वक्त के साथ जीना सीख लो,

जिंदगी न ठहरती किसी के लिए जो करना है कर लो,

बना लो जिंदगी को अपना मीत संग संग उसके चलो,

जैसी भी हो जाएं परिस्थितियां तुम मुस्कुराकर जी लो।


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