ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा
ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा
यह ज़िन्दगी अक्सर इकरार करने के बाद ही तो शुरू होती है।
कर मोहब्बत जिंदगी से मोहब्बत ज़िंदगी का दूसरा नाम जो है।।
इकरार करने की पहल में, ऐ मुसाफिर न इतना विलंब कर तू।
कि देख बढ़ती जा रही आगे ये ज़िन्दगी तेरी बीत जाने को है।।
लगा ले गले से ज़िंदगी को कि ये ज़िन्दगी मिलेगी ना दुबारा।
खोल दे तू दिल के दरवाजे देख ये ज़िन्दगी पास आने को है।।
ज़िंदगी कभी धूप कभी छांव, कभी इकरार है कभी इनकार।
बस आगे बढ़ ज़िन्दगी अपना हर पहलू तुझे समझाने को है।।
मोहब्बत कर इस ख़ूबसूरत ज़िन्दगी से थोड़ा ऐतबार तो कर।
सुन ज़रा ज़िन्दगी तैयार तुझसे कुछ कहने कुछ सुनने को है।।
स्वीकार कर ज़िन्दगी की धूप को भी, तो लगेगी ये भी छांव।
मीत बना ले जो उसे तो देख ज़िन्दगी तुझे गले लगाने को है।।
कुछ कदम जो आगे बढ़ाएगा, तो ये ज़िंदगी भी आगे बढ़ेगी।
फिर नजरें उठा कर देख खुशियों का दरवाजा खुलने को हैं।।
क्यों बैठा है तू उम्मीद हारकर, अंँधेरों में यूँ खुद को कैद कर
थोड़ा प्यार से गुनगुना कर देख, बंद रास्ता भी खुलने को है।
बैरी नहीं ये ज़िंदगी किसी की बस समझने का हुनर चाहिए।
समझना है समझ ले इसी पल कि ज़िंदगी खत्म होने को है।।
आज किया इनकार अगर हर लम्हा हाथ से निकल जाएगा।
यही बात देख कब से ज़िंदगी भी तुझे बैठी समझाने को है।।
तेरी चाहत का पैमाना,खोलेगी राह जिंदगी से मोहब्बत की।
जी ले प्यार से हर लम्हा ज़िंदगी भी यहांँ तैयार जीने को है।।
