ज़िंदगी की धूप-छाँव
ज़िंदगी की धूप-छाँव
शहर की तंग गलियों से निकल कर गाँव की खुली हवाओं तक का सफ़र है ज़िंदगी..!
माँ के ममता भरे आँचल से लेकर प्रीतम के आँगन तक का सफ़र है ज़िंदगी..!
नीम के सादृश्य कड़वे तीखे बोल से लेकर शहद सा मृदुल बोल है ज़िंदगी...!
और अधिक क्या कहें दुःखों के धूप से सुखों के छाँव तक का सफ़र है ज़िंदगी..!
सच है अद्भुत तालमेल है ये (दुःख-सुख) धूप छाँव सी ज़िन्दगी।