ज़िंदगी के मोड़
ज़िंदगी के मोड़
इम्तहान लेती है ज़िंदगी हर मोड़ पर,
कुछ मोड़ होते है जो बस गुज़र जाते हैं,
कुछ होते है जो जरा रुककर चले जाते हैं,
और कुछ एक बोझ बनकर रह जाते हैं,
गुज़ारना तो उस वक्त को भी होता है,
गुज़रना तो उस मोड़ से भी होता है,
सदियों से चलती घड़ी की सुइयां भी कभी,
बेवक्त अपनी शख़्सियत भूल जाया करतीं हैं,
सालों से टिक टिक करती ये सुइयां,
इस मोड़ पर रुकने को तुल जाती हैं,
कभी न थकने वाली वो सुइयां,
रुकी हुई सी आज नज़र आती हैं,
दिल मजबूर और दिमाग समझदार होता है,
दोनों के तालमेल का एक प्यारा सा अंदाज होता है,
मजबूर दिल रोता है, की जानता है वो सब कुछ,
समझदार दिमाग नहीं चाहता समझना अब कुछ,
हालातों को बदलना हमारे हाथों में नहीं,
कशमकश दिलों दिमाग की सुलझाना भी बस में नहीं,
ज़िंदगी का बड़ा इम्तहान है यही,
गुज़र जाए ये और बस कोई आस नहीं।