जिंदगी के लम्हे।
जिंदगी के लम्हे।
जिन्दगी के कुछ लम्हे मैंने बचाकर रखा था।
सोचा था उसे फुरसत में खर्च कर लूंगा।
मुझे लम्हे बचाने में पता ही न चला की।
जिंदगी कब आहिस्ता आहिस्ता गुजर गई।
कल तक मैं भाई, चाचा, और कुछ था।
पर, आज मैं बुजुर्ग बन के बड़ा हो गया।
लोग कतरा के पास से यूँ ही निकल गए।
मेरा हाथ बस यूँ ही थामे बिना रह गया।
सोचा था चलो जिंदगी फिर से रिवाइंड कर लूं।
पर फ़िल्म पट्टी यही कहीं टूटी हुई निकली।
जिन्दगी के कुछ लम्हे मैंने बचाकर रखा था।
सोचा था उसे फुरसत में खर्च कर लूंगा।