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जीवन

जीवन

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जीवन 

     -- अरुण प्रदीप 

क्या है जीवन 

केवल एक स्वप्न 

जब तक हैं मुँदे नयन 

यह भी , वह भी सब 

मनभावन ;

और 

खुल जाने पर आँखें 

बस टूटते काँच की 

किर्चन !

 


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