जीवन संग्राम
जीवन संग्राम
जीवन भाग रहा है पल-पल
मायावी सज्जित अश्व पर छल
क्षण भर को ,लगाम दे ,इसको
चंचल मन को विश्रान्ति दे, ठहर!!
सोच !क्या तेरा यही मुकाम है ?
जो जुटा रहा साजो-सामान है ।
झांक जरा उनके भी मन में ,
जिन से मिली हैं, सांसें तन में ।
जिसने सारा जीवन है वारा ,
वह पिता भी कितना न्यारा।
ईश्वर बालरूप धर अवतार ,
लगा कंठ किया क्या दीदार ?
जिसने सारा जगत रचाया,
उसे याद कर कदम बढ़ाया?
एक दिन ऐसा भी आयेगा पल ,
मुट्ठी रेत सी जायें प्राण निकल।
फिर पटाक्षेप ही हो जायेगा ,
तब क्या तू कुछ कर पायेगा।
द्रुतगामी समय की सुन आहट ,
आगामी संकेत भरी घबराहट ।