जीवन पथ
जीवन पथ


जब खुद पे हद से ज्यादा भान हो जाये
हर क्षण केवल खुद का सम्मान नजर आये
खुद की ग़लती पे, गैरों को दोषी ठहराया जाये
खुद की ज़िद को पूरा करने के ख़ातिर,
सही बता खुद को, सच पर दोष लगाया जाये
क्यों लोग मोहब्बत में यूँ प्रेमी को तड़पाते हैं
कभी पैसों से प्यार को तौला जाता है,
तो कभी सुन्दरता की वजहों से ठुकराते हैं
है जिनको भान बहुत अपनी सुंदर काया का
क्यों नहीं दिखाई देता उनको सच्चे दिल का साया
फिर भी
रिश्तों के मान हो या दिल पे सम्मान के ख़ातिर
जो रिश्तों की राहों पर अक्सर झुक जाते हैं
रिश्तों के दोषी वो ही माने जाते हैं
ऐ "सुभाष" झुकते-झुकते तेरा वजूद जो खो जायेगा
सच क्या है ये कौन बताएगा ?
रिश्ते कुछ यूँ होते हैं
एक-एक पल उठकर जो पतंग लगे लहराने ऊँचे आसमान पर
विचलित हो जाती है कुछ पल में स्वच्छंद हो उड़ जाने को
जब तक डोर सलामत है तब तक नभ में विचरण करती है
जो डोर अलग हो जाये, एक पल लगता है जमीं पर आने में
अब पछतावा होता है
जीवन में ऐसे ही लोग बहुत पछताते हैं
जब आकर्षित लम्हा जीवन से खो जाता है
सच कहते हैं बस हर पल रोना आता है
सच्चे दिल की वो यादें जीवन भर तरसाती हैं
सच क्या है खुद की स्थिति बतलाती है
मंज़िल अपनी खुद की तू अब खुद चुन ले
बस चलता जा अपने पथ पर बस चलते जा
बनकर मीठा पानी तू दरिया सा बस बहता जा
बह दरिया सा पानी प्यासों की प्यास बुझाता जा
तू प्रीत का दरिया है कहीं तो प्यासा उपवन होगा
कहीं तो होगी वो बंजर औ प्यासी धरती
दे शीतलता उसे तुम को फिर से उपजाना होगा
हाँ सुबोध तू छोड़ फ़िक्र की जंजीरे
खोल दे सारे सम्बन्धों की हर एक डोर
अब हर पल को आज़ाद उन्हें कर दे
जब होगा उनको अपनी ग़लती का अहसास
फिर से होगा दिल में उनके तेरा सम्मान
कर खुद की ग़लती स्वीकार तुझे अपनाएंगे
वो वापस आयेंगे तुझे फिर से गले लगाएंगे