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Jitendra Mathur

Romance

3  

Jitendra Mathur

Romance

जीवन महका.....!!

जीवन महका.....!!

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मेरे जीने का मकसद केवल तुम हो,

जीवन के हर पल का हिसाब तुम हो।


मै देख रहा हूँ, तुम बेचैन बहुत हो,

नयन सागर सी गम्भीर बहुत हो।


तुम मेघो की गर्जन से डरी बहुत हो,

पर मेरे जीने की आशा तुम ही तो हो।


समय के पन्ने तो बदलते ही है,

तुम उन पन्नों में क्यों गुम सी हो ? 


साँसों का आना जाना तो नियति है,

पर तुम्हारा यूं ठहराव क्या सही है ? 


अब यहीं से लौट जाना क्या ठीक रहेगा ? 

विकटता में निकटता क्या ठीक रहेगा ? 


चलो जो समय मिला है उसे खुशनुमा जियें, 

मेरी तो हर ख्वाहिश सिर्फ तुम ही तो हो।


साहित्याला गुण द्या
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