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Rajkumar Jain rajan

Abstract

4.7  

Rajkumar Jain rajan

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जीवन के सफर में

जीवन के सफर में

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जीवन के सफर में

शहरी जीवन की यातनाओं से

विकल्पहीन हुए रिश्ते भी

कंक्रीट के जंगल की तरह

हो गए कठोर और बेज़ान

हर कोई लगता जैसे

हो सबसे अनजान


तब अचानक एक दिन

सारे रिश्तों की पोटली को

दिल की खिड़की में छुपाए 

निकल पड़ा मैं

अनजान सफर पर

खोजने ऐसा एक गांव

जहां हो अपनेपन वाली

 प्यार भरी छोटी- सी ठाँव


रखते हों जहां सब 

एक दूसरे का खयाल

 सुख - दुख में साझा करते

अपने निश्छल पल

बच्चों की टोली करती

हंसी- ठिठोली


बूढ़े साथ बैठ बतियाते

युवा शक्ति अपने श्रम से

खुशियों को महकाती

दादी- अम्मा लोरी गाकर

नन्हें- मुन्नों को बहलाती

छाई रहती हरदम जैसे

होली और दिवाली


शांत पेड़- सी आत्मीयता मिलती

और मिलती अपनेपन की मुस्कान

रिश्तों की खुशबू से

जो महका करता

मैं निकल पड़ा अनजान सफर पर

ढूंढने ऐसा ही एक प्यारा गांव


समरसता की बातें होती

नदियां से पुरवाई आती

मस्त मगन हो सब जन

गाते जहां हर रोज प्रभाती

सांस्कृतिक परम्पराओं का

जहां रोज दर्शन होता


मस्त - मधुर होती 

जहां की जीवन शैली

निकल पड़ा मैं

अनजान सफर पर 

ढूंढने एक ऐसा गांव


हो जो दुनिया में सबसे प्यारी

अपनेपन वाली ठाँव।


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