जी लेने दो मुझे
जी लेने दो मुझे
ना ही स्त्री में और ना ही पुरूष में मैं आती हूँ,
मैं वो हूँ जो किन्नर कहलाती हूँ,
मैं गली में निकल जाऊँ तो लोग घूरते हैं मुझे,
ऐ समाज के ठेकेदारों जी लेने दो मुझे।
कहते हैं स्त्री कोमल होती है,
उसकी रक्षा करना पुरुष का धर्म होता है,
देखो मेरी ओर, क्या देखा है वो किन्नर जो
थोड़ा सा भी रोता है, बस थोड़े से सम्मान
की आशा है मुझे,
ऐ समाज के ठेकेदारों, जी लेने दो मुझे।
कहते हैं स्त्री गृहस्थी संभालती है,
कहते है पुरूष धन कमाता है,
देखो मेरी ओर मुझ में तो दोनों ही
आधा आधा है,
अपने लिए दो रोटी कमा सकूँ इतना
हक़ दे दो मुझे,
ऐ समाज के ठेकेदारों, जी लेने दो मुझे।
जब घर में ख़ुशियाँ आती हैं तो मेरा
आशीर्वाद चाहते हो,
पर कभी सड़क पर दिख जाऊँ तो
मुझसे आँख चुराते हो,बस थोड़े से
सम्मान की आशा है मुझे,
ऐ समाज के ठेकेदारों, जी लेने दो मुझे।
ना ही स्त्री में और ना ही पुरूष में मैं आती हूँ ,
मैं वो हूँ जो किन्नर कहलाती हूँ,
मैं गली में निकल जाऊँ तो लोग घूरते हैं मुझे,
ऐ समाज के ठेकेदारों जी लेने दो मुझे।
