जी चाहता है
जी चाहता है
मन मेरा थोड़ा सुकून सा चाहता है
रात का चाॅंद प्यारा लगता है
हर सितारा हसीन लगता है
क्या कहूं खुला गगन बहुत प्यारा लगता है
जी चाहता है आकाश छू लूं
कभी धूप की चादर ओढ़ लूं
कभी बादलों संग घूम घूम कर
पूरें आसमां की सैर मैं कर लू
कभी बरखा के बरसतें पानी को
अपलक निहारा करूं
कभी उस पानी में भींग भींग कर
मदमस्त हो जाया करूॅं
गूंगी बहरी इस दुनिया को छोड़
ऊपर ही उठ जाया करूॅं
लंगड़ी लूली मान्यताओं को
कहीं फेंक आया करूॅं
पल भर में तों ये दुनिया
झिड़क देती है मुझें
हर बात पर कटघरें में
खड़ी कर देती है मुझें
उनकें हर सवाल का
क्यूं मैं ज़बाब दूं
अपनी ही जिंदगी को
खुद ही क्यूं ना सॅंवार लूं
खो गए हैं जो रिश्तें
उन्हें फिर से क्यूं ना संजों लूं
टूट गए जो अपनों के दिल
मन मेरा उन्हें फिर मिलाना चाहता है
ख्वाब देखें हैं जो हमनें
दिल सच बनाना चाहता है
सपनों में जो उम्र है गुजरी
वो हकीकत में जीना चाहता है
कभी झूठ भी बोला खुद से हमनें
अब सिर्फ़ सच बोलना चाहता है
अब अंधेरों में नहीं
सिर्फ़ उजालों में दिल उड़ना चाहता है
कभी मन से खुश होकर
सारें जहाॅं को हॅंसाने को जी चाहता है
रोज जिंदगी की दौड़ भाग-भाग से
थोड़ा ठहर जानें को जी चाहता है
कभी महफिलों को छोड़कर
दिल खुद में ही सिमटना चाहता है
कभी यूं ही खाली बैठकर
दिल कुछ गुनगुनाना चाहता है
मदमस्त जुगनू को देखकर
दिल वैसा चमकना चाहता है
इन बहती हवाओं के जैसा
दिल फिजाओं में घुलना चाहता है
मेंहदी के गहरें लाल सा
कुछ रचनें को जी चाहता है
जिंदगी को सुनहरें शब्दों में
बंया करने को जी चाहता है
कभी मन इन पक्षियों सा
चहकना चाहता है
कभी फूलों की खुशबू सा
महकने को जी चाहता है
ख्वाहिश नहीं कुछ और पानें की
दिल खुद को पाना चाहता है
बीती हुई ज़िन्दगी को
फिर लिखने को जी चाहता है।