Shayar Praveen

Romance

5.0  

Shayar Praveen

Romance

झुकी निगाहें

झुकी निगाहें

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झुकी निगाहें जैसे कि शर्मा गई हो,

किसी के छूने से जैसे कि घबरा गई हो।

देखकर मुझे वो कुछ इस तरह मुस्कराई ,

लगा कि जैसे वो मेरे दिल में आ गई हो ।


जरा धीरे से पास जाकर थामा हाथ उनका,

वो मचली इस कदर जैसे लहरें करवटें

बदल रही हो।

मास सावन का है, गरजते बादलों संग

बिजली तड़पी,

वो चिपकी मुझसे कुछ इस तरह

कि कोई नदिया समन्दर में समा गई हो।


मैं उड़ता बादल सा मंडरा रहा था,

वो प्यासी धरती सी सूख रही थी।

मैंने कि प्रेम वर्षा, वो झूमी कुछ

इस तरह कि

जैसे कोई मोर नृत्य कर रहा हो।


मैंने पूछा कि तुम मेरी बनोगी,

वो हँस के बोली, मैं तो कब का हो चुकी हूँ।

मैंने चूमे होंठ उनके, वो भागी दूर मुझसे

जैसे कि एक दफा फिर शर्मा गई हो,

मेरे छूने से घबरा गई हो ।।



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