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सतीश मापतपुरी

Inspirational

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सतीश मापतपुरी

Inspirational

जगदम्बा हर वनिता है

जगदम्बा हर वनिता है

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तू मणिकर्णिका तू पद्मिनी, तू राधा तू सीता है।

तू ही रंभा तू ही अंबा,  जगदम्बा हर वनिता है।


महिषासुर का वध करती जब, माँ दुर्गा कहलाती है।

कामी वहशी का तू ही बन, काली खून बहाती है।

आग शीतलता दोनों तुम में, तू चंदा तू  सविता  है।

तू  ही रंभा तू  ही अंबा, जगदम्बा हर वनिता है।


हुस्न तुम्हीं हो  प्यार तुम्हीं, कुदरत का दुलार तुम्हीं।

तू बहार तू ही करार  है,  सृष्टि  का गुलज़ार तुम्हीं।

राग रागिनी तान छंद तू, गीत ग़ज़ल औ कविता है।

तू  ही रंभा तू  ही अंबा, जगदम्बा हर वनिता है।


तू गुलाब है कांटों वाला, कह दो आज जमाने से।

हर लंपट को ये बतला दो, रक्खे होश ठिकाने से।

मर्द नहीं नामर्द है जो कि, कर कुकर्म भी जीता है।

तू  ही रंभा तू  ही अंबा, जगदम्बा हर वनिता है।


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