जब जब कलम चली
जब जब कलम चली
जब जब कलम चली
सत्य की राहों से होकर निकली
निरंकुश होते सत्ताधारियों की
भी नींव उसने हिला दी।
शब्दों को सत्य की कसौटी पर
परख सदैव आगे बढ़ती रही
हर तबके के हक की आवाज
इसने है बुलंद की।
जब जब कलम चली
कुछ नया ही बतला और सीखा गई
हमने कौन सा इतिहास देखा है
किंतु यह उससे भी
हमको परिचित करा गई।
रामायण हो या
भगवद गीता, उसके काल के
चित्रण को भी
मन मस्तिष्क पर दर्शा गई।
कालिदास जैसे विद्वान कवि को भी
इतिहास के पन्नों में
अमर करा गई।
जब जब कलम चली
अल्फाजों को बँया करती रही
कभी किसी का दर्द झलका गई।
कभी किसी की
मोहब्बत की दासतां सुना गई
कभी मन में चल रही
उथल पुथल दिखा गई।
कभी न समझ में आने वाली
बात भी समझा गई
कभी कभी जो बात
जबान से नहीं कही जाती,
वो बात लेकर हाथ में
तुझे लिख के दिखा दी।
ए मेरी कलम तु मुझसे यारी
बखूबी है निभाती।
अंजान की कलम
ऐसे ही राहों
पर चलती जाती है।।