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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Tragedy Fantasy

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Tragedy Fantasy

जब दिल टूट जाता है..

जब दिल टूट जाता है..

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जब एक मासूम दिल टूट जाता है

जर्रा जर्रा ये बिखर जाता है,

चाहत कहीं खो सी जाती है 

सारा जहां जैसे रूठ जाता है।


आंखें कसक में डबडबाती हैं 

मुस्कराहट होंठों में रुक जाती है,

अंदर हर रोज़ कोई तिल तिल मरता है

जब उस छलिए की याद सताती है।


सपनों की मीनारें ढह जाती हैं

खुशियों की कली मुरझा जाती हैं,

जो कल तक था मेहरबान अपना

आज वो पराए से नजर आती है।


कुछ बातें अधूरी रह जाती हैं

कुछ बातें सीने में उभर आती हैं,

वक़्त तो चलता है अपने ही मौज में

पर यादें हर मोड़ पर रुक जाती हैं।


जब नींदें भी सवाल करने लगती है

उनके ख्वाबों से बगावत करने लगती है,

रातें लंबी लगती हैं बेवजह अब तो

तन्हाई भी शिकायतें करने लगती हैं।


अब किसी दिल पर एतबार नहीं करना

टूटा इस कदर कि कोई प्यार नहीं करना,

हर साए में मुझे दिखता है अब धोखा यहां

इस दिल को अब किसी से करार नहीं करना।


अब ये दिल बस खामोशी चाहता है

ना किसी से शिकवा कोई गिला चाहता है,

बस उसकी यादों में खुद को समेटे

हर लम्हा बस अपना जीना चाहता है।


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