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Geet Agrawal

Abstract

4.8  

Geet Agrawal

Abstract

।जाना था कहाँ, कहीं और चले गए|

।जाना था कहाँ, कहीं और चले गए|

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कहना था क्या,

कुछ और कह गए।

करना था क्या,

कुछ और कर गए।

जाना था कहाँ, कहीं और चले गए।


सोये थे हम,

सोच कर यही,

होगी सुबह,

होगा सब सही।

चाहा तो बोहोत,

की हूँगा मैं वहीं।


कोशिश तो की,

पर रोज़ तो नहीं।

जाना था कहाँ, कहीं और चले गए।


सपने जो देखें,

वो पूरे न हुए।

रास्ते है मगर,

मंज़िल खो गई

जाना था कहाँ, कहीं और चले गए।


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