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Geet Agrawal

Abstract

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Geet Agrawal

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तबस्सुम तेरे चेहरे की

तबस्सुम तेरे चेहरे की

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जब भी तुझे याद किया,

चाँद का दीदार किया।

रब से बस यही है गुज़ारिश,

हो पूरे तेरे सारे ख्वाइश।


तबस्सुम तेरे चेहरे की,

जैसे कोई चमकता तारा।

तेरे ख़ुशी के खातिर,

कदमों में रखदूं ये जहाँ सारा।


हमारा मिलना कोई इत्तेफ़ाक़ तो नहीं,

गुज़रता हूँ तेरी गलियों से रोज़।

शायद तुझे ये पता नहीं,

करता हूँ तेरी किताबों में खोज।


सुबह उठकर जब देखा आईना,

सूरज की किरणे आँखों पर कसी।

आया मुझे भी जीने का मायना,

जब दूर से सुनी तेरी खिलखिलाती हंसी।


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