जागता हूँ आजकल रात भर
जागता हूँ आजकल रात भर
खुद से ही बढ़ी दूरियाँ मिटाने के लिए ,
मैं जागता हूँ आज कल रात भर तुम्हें भुलाने के लिए
जो वहम हो गया था कि आओगे तुम लौटकर,
बस उसी वहम को जहन से मिटाने के लिए
मैं जागता हूँ....
कभी मिले वक्त तो पूछना अपने घर की खिड़कियों से ,
आता हूँ अब भी अक्सर वहाँ तुम्हें दिख जाने के लिए
मैं जागता हूँ ....
हाँ यूँ तो सिख लिया है मैंने हँसना मुस्कुराना मगर ,
कुछ अश्क संजोकर रक्खें है अपने सिरहाने के लिए
मैं जागता हूँ.....
लफ्जो के मोतियों को गजलों में पिरोना कहा आता है,
लिखता हूँ महज तेरे हाथों की किताब हो जाने के लिए
मैं जागता हूँ....
खैर बहुत जी लिए बस तुम्हारी ही खुमारी में ,
अब जी कर दिखाएंगे हम भी जमाने के लिए
मैं जागता हूँ आजकल रात भर तुम्हें भुलाने के लिए
तुम्हें भुलाने के लिए...।