महज नाम है याद
महज नाम है याद
महज नाम है याद मगर किरदार भूल बैठे हैं ,
हम शायद अपने जीवन का आधार भूल बैठे हैं।
कोई दिया जला था रात भर हमें रोशनी देने के लिए ,
हुई है सुबह तो चिरागों का आभार भूल बैठे हैं ।
था जो पहरेदार कभी उसी खूबसूरत चमन का,
पाकर हाथों में गुलाब वही खार भूल बैठे हैं।
आज है कदमों में जो अपने कामयाबी ,
हुई थी जो कभी अपनी भी वो हार भूल बैठे हैं।
बहने लगती थी कभी आँखें किसी चींटी की मौत पर,
सजाकर माँस से थाली अब वो संस्कार भूल बैठे हैं।
चले हैं दर्द मिटाने मयखानों के दरवाज़ों तक,
है इसी दर्द से दुखी खुद का परिवार भूल बैठे हैं।
याद तो हैं श्री कृष्ण की हमें राधिका संग प्रेम लीला,
धर्मयुद्ध में गीता का मिला सार भूल बैठे हैं।
सियासत ने सताया है फिर भी किस्मत पर रोते हैं,
शासन पर होता है जनता का अधिकार भूल बैठे हैं।
हर तरफ है कोशिशें यहाँ मरने और मारने की ,
जीने के लिए भी तो है दिन चार भूल बैठे हैं।
हम शायद अपने जीवन का आधार भूल बैठे हैं...