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Vrajlal Sapovadia

Abstract

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Vrajlal Sapovadia

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जादूगर

जादूगर

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जादूगर जब जादू करता

नजर सबकी बंद करता 

कागजका वो फूल बनाता 

फूलका वो पत्ता बनाता 


पत्ताका जब पेड़ बनता 

बालक सब चकित बनता 

लड़कीको वो बंद करता 

अंदर से वो गायब करता 


पुतलीको वो जिन्दा करता 

जल को जब गरम करता 

बर्तनमे तब बर्फ बनता 

विज्ञानसे वो उल्टा करता 

हाथसे वो चालाकी करता 

नजर सबकी बंद करता 

ज्ञान की सीमासे ऊपर रहता 

सबका ये मनोरंजन करता 

कागजका वो पैसा बनाता 


पर वे पैसा तो गायब होता 

जब वो दुकान पे कुछ लेने जाता 

पर वे पैसा तो गायब होता 

पैसे के लिए वो हाथ फैलाता 


दर्शक सब कुछ पैसे देते 

वो पैसे दुकानमें चल जाते 

खेल करके जब वो घर जाता 

तब घरवाली जेब खाली करती 


उसका जादू वहां गायब होता 

घरवाली उसको बकरी बनाती 

मन चाहे तो बन्दर करती 

कभी वो उसका उंदर करती 

कभी कभी तो अंदर करती 


जादूगर का तो भाई ऐसा जादू 

ऊपर वाला बड़ा जादूगर 

वो जो करता सब है जादू 

विज्ञानसे वो सब सिद्ध होता 

नकल से वो पर होता 


बाकी सब कुछ बातें बातें 

जादूगर तो आते जाते।


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