इतनी सी ही तो चाहत थी मेरी....
इतनी सी ही तो चाहत थी मेरी....
बस इतनी सी ही तो चाहत थी मेरी
मैं तुम्हारी होना चाहती थी...
तुम्हारे होंठों की मुस्कान बनना चाहती थी..
तुम्हारे सुबह की चाय बनना चाहती थी..
तुम्हें मिलने वाली सुकून बनना चाहती थी..
मैं तुम्हारा वजूद खुद में चाहती थी...
तेरे हाथों को तो सफर करना चाहती थी..
आंसुओं को पूछने के लिए तेरा हाथ बनना चाहती थी...
महसूस कर सकूं तेरी धड़कनों को यह हक़ चाहती थी..
तुम्हारे साथ एक बंधन में बंधना चाहती थी
तेरी हो जाऊँ यही चाहती थी..
बस इतनी सी ही तो चाहत थी मेरी.......
पर मेरी चाहत सिर्फ चाहत बन कर रह गई......!