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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

इतिहास गवाह है

इतिहास गवाह है

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कोर्ट रूम में,
पहला वकील गरजा, आवाज़ में था शोला,
"रणभूमि का नाम हो 'महाराणा का शौर्य'!"
दूसरा व्यंग्य से बोला, 'इतिहास' शब्द को घिसकर,
"शहंशाह जीते! अभिलेख यही पुकार कर!"

जज ने पूछा, निगाह तीखी और गहरी:
"कौन देगा गवाही? आगे आए वो तो ज़रा!"

तभी, कटघरे से धुएं के साथ एक धुंधली आकृति उठी—
एक आवाज़ गूँजी, गहरी और अनसुनी,
"मैं हूँ गवाह! मैं हूँ अनकही कहानी!"


न महाराणा, न शहंशाह यहाँ अभियुक्त हैं,
जीती थी नफ़रत वहां, मैं प्रत्यक्ष प्रमाण हूँ।

इंसानियत का दीपक टिमटिमा कर बुझा, प्रकाश मंद हुआ,
ज़हर विजयी हुआ, सारी सद्भावना का अंत हुआ।

"तुम कौन हो, तुम कौन हो"
आवाज़ उठी।

"मुझे पहचानो!" धुआँ बोला बल के साथ,
"मैं नींव में दबा आँसू हूँ, तुम मुझसे अनजान।
मैं तलवार की क्रूर वार से दबी चीख़ हूँ,
मैं युगों की खामोशी हूँ, जो किताबों से परे है, महान!"

वकील चुप थे, घबराए हुए, बोला कोई और, "तुम सालों पहले के प्रत्यक्ष कैसे हो सकते हो? क्या तुम इतिहास हो?"

धुआँ बस हँसा, एक ठंडी, धुंधली दुहाई,
"तुम्हारी जीत तो हार का मुखौटा है बदरंग,
तुम रक्त से लिखते इतिहास, मैं आँसुओं से भरता सत्य का रंग!"

जज ने तब पूछा: "कहाँ हैं प्रमाण तुम्हारे?"
धुआँ बोला: "देखो मेरी ना दिखती आँखों में, जो ज्वाला से हैं हारे—
देखो पीड़ा के कफ़न की धुंधली तस्वीर।"


कहकर कटघरा खाली हुआ, पर आवाज़ रही वहीं,
"इस धरती को 'मोहब्बत' का नाम दो, मन में रखो यही, क्योंकि इतिहास की स्याही सूख जाती, कहानी धुल जाती है,
पर प्रेम की लकीरें... 
वे ही भविष्य की फसल कहलाती हैं!"


धुआं उड़ गया,
पीछे छोड़ गया सवाल: "क्या तुम सीखोगे, पुरानी बात, नए लोगों?"


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