इश्क़ दर्द और मेरी शायरी ''कवि अपर्णेय''
इश्क़ दर्द और मेरी शायरी ''कवि अपर्णेय''
सनम दिल के घरौंदे में, अजब सा नूर जलता है
मेरी आँखों में अब तक यूँ तुम्हारा ख़्वाब पलता है
कभी तुम साथ चलती थीं,तो दुनिया आह भरती थी
जो अब तन्हा ही निकला तो ज़माना साथ चलता है
मुझे मशहूर मत करना, मैं बदनाम अच्छा हूँ
अफ़सानों में रहने से तो मैं गुमनाम अच्छा हूँ
दिलों की ये ख़रीदारी, तू माने ग़र शराफत तो
तुम्हारी इस शराफ़त से तो मैं बेईमान अच्छा हूँ
''कवि अपर्णेय''