कि पत्थर भी हमारी कब्र से, अब नम निकलते हैं
कि पत्थर भी हमारी कब्र से, अब नम निकलते हैं
1 min
13.7K
मौजों से जो लङता हूँ, किनारे रूठ जाते हैं
भरी मंझधार में सब के, सहारे छूट जाते हैं
बिना तेरे मेरे सपने सनम कुछ इस तरह टूटे
बिछङ कर चाँद से जैसे,सितारे टूट जाते हैं
मेरे सीने से अब तो बस, तुम्हारे गम निकलते हैं
वो कहते हैं कि हम उनकी गली से कम निकलते हैं
हम मर कर भी तुम्हारी याद में कुछ इस तरह रोये
कि पत्थर भी हमारी कब्र से, अब नम निकलते हैं

