STORYMIRROR

ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

Abstract

इश्क तो इश्क है

इश्क तो इश्क है

1 min
380


 इक रोज़ जब…

चंद बूँदे पड़ेंगी 

तुम्हारी पलकों को…

छू कर ज़मीन पर गिरेंगी


उस रोज़ शाम ढलकर

तुमसे जाने की इजाज़तमाँगेगी

तुम्हारी बेचैनगी में

डूबते हुए जज़्बात…

जब तुम्हें मुकम्मल तरीक़ों से…

बेतरतीब कर देंगे!


तब जाकर रात की

ख़ामोशी का सहारा लेकर

तुम मेरी मोहब्बत-ए-आवारगी को

अपनी बाँहों का सहारादेना

तब जब रात तुम्हारी

इस मदहोशी को…

निगलती जायेगी


तब तुम अपने जिस्म को

मेरे अंदर मिटा देना

उस मिटते जिस्मकीराख़ से

पहले जो धुँआ उठेगा

वो मेरे दिल से तुम्हारे लिये

रूहानी मोहब्बत का सबूत होगा

जो मैं सदियों से

तुम्हारे लिये संजोता आ रहा हूँ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract