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इश्क की औक़ात

इश्क की औक़ात

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मुझे खुशियों से नफ़रत थी
मेरा गम से ही रिश्ता था

बियाबाँ रास आते थे...
सुनो,बस बात है इतनी...
की ज़िद , खुद की भी शामिल है..

मेरे बर्बाद होने में..
अकेले इश्क की वरना..
कहाँ औक़ात है इतनी..


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