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खुदगर्ज

खुदगर्ज

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सौ बरस भी जीयें बिन तुम्हारे तो क्या

सब अँधेरे हुए चाँद तारे तो क्या

तुमको खोया तो खुद से पराजित हुए

ज़िन्दगी से भी गर आज हारें तो क्या

ज़िन्दगी क़र्ज़ है अब उतारें तो क्या

जिस्म खुदगर्ज है अब संवारें तो क्या

तुमसे बिछुड़े तो साँसें कहीं गम हुई

इससे ज्यादा कहो खुद को मारें तो क्या


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