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Alpana Harsha

Romance

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Alpana Harsha

Romance

इन्तज़ार

इन्तज़ार

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अक्सर रातों को

जागा करती हूँ मैं

कभी करवट लेती हूँ 

तो कभी उठकर बैठ जाती हूँ

मेरी नींद कोसों दूर

तुम्हारे होटल के कमरे में

देती है दस्तक

उनिन्दी आंखों से

मैं पलक भी नहीं

झपका पाती हूँ,

सुनो ना 

चुभती है

चाद्दर में पडी़ सिलवटें 

ये गिलाफ भी 

पत्थर सा लगता है

जलती बत्तियाँ भी 

अन्धेरे सी लगती है 

अन्तहीन हो गया है

अबकी बार ये इंतज़ार भी

कब आओगे प्रिये ।


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