छाती के पास कुछ जलने सा लगता है,मगर उस धुएँ को अंदर ही पीने के प्रयास में,आँखों में पानी भर आता है,ज... छाती के पास कुछ जलने सा लगता है,मगर उस धुएँ को अंदर ही पीने के प्रयास में,आँखों ...
अर्थहीन तुम्हारी छली बातों से निकलकर आँखें उजियारी भोर तलाश सी रही है। अर्थहीन तुम्हारी छली बातों से निकलकर आँखें उजियारी भोर तलाश सी रही है।
गिलाफ भी पत्थर सा लगता है गिलाफ भी पत्थर सा लगता है
तुमसे फिर कोई शिकायत नहीं होगी तुम्हारी ख़ामोशी मेरी यात्रा में एक अनोखा योगदान होगी तुमसे फिर कोई शिकायत नहीं होगी तुम्हारी ख़ामोशी मेरी यात्रा में एक अनोखा...
अर्द्धविराम पर ठहरी इस जीवन की हर पंक्ति तुम्हारे संवाद की पुनरावृत्ति है... अर्द्धविराम पर ठहरी इस जीवन की हर पंक्ति तुम्हारे संवाद की पुनरावृत्ति है...