STORYMIRROR

ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

Abstract

इंतजार मन का

इंतजार मन का

1 min
282


मन प्रतीक्षा करता है...

कभी-कभी ऐसा क्यों होता है... 

कि - होठों पर उभरते कुछ छन्द 

न कहकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं 

लगता है कोई आहिस्ता से 

छू जाता है तन के साथ मन को भी !


क्यों लगता है कभी 

पत्तों के खड़कने पर किसी के आने का आभास !

हवा के गुज़र जाने पर

किसी के समीप से जाने का एहसास !

क्यों लगता है किसी का स्पर्श 

सम्पूर्ण बदन पर.... 

चौंक कर किसी को बार-बार 

पीछे मुड़ देखने को , मन क्यों करता है...? 


इक ख़ुशबू-सी सब ओर उड़़कर, 

मन मोहती है...

ये महक जो चाहने पर ही 

महसूस की जा सकती है 

यकायक सारे बन्धन क्यों तोड़ देती है 

और उतर जाती है...

साँसों के एक छोर से दूसरे छोर तक...

क्यों होता है ? हाँ , क्यों होता है ऐसा...!!


प्रतीक्षा करता है..मन

उस कभी न आने वाले की..!

क्यों करता है, मन प्रतीक्षा...

आख़िर क्यूँ..?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract